वैशाख शुक्ल सप्तमी पर शिव की जटाओं में समाई जटाशंकरी गंगा का आज धराधाम पर अवतरण दिवस है। उनके धरती पर आने के बाद ही राजा भागीरथ के पूर्वजों की तृप्ति हुई थी। जन्म के एक महीना तीन दिन बाद ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा और भगीरथ के चरण हरिद्वार की धरती पर पड़े थे।माँ गंगा का आगमन अस्थियां और मृतकों की राख बहाने के उद्देश्य से हुआ। धरती पर बहने वाली गंगा इकलौती ऐसी नदी है जिसे माता की संज्ञा दी गई थी। उन्हीं की तर्ज पर धरती वासियों ने बाद में यमुना को भी मैया कहकर संबोधित किया।
शापित सगर पुत्रों की राख बहाने को धरती पर आई गंगा त्रेता युग से कलयुग के इस चरण तक अनवरत बह रही है। गंगासागर के कपिल मुनि आश्रम में 60 हजार सगर पुत्रों के पार्थिव अवशेष बहाने के बाद से लेकर आज तक गंगा अस्थियां बहाकर मोक्ष प्रदान कर रही है। धरती पर गंगा के आगमन का अवतरण पर्व गंगादशमी के रूप में हरिद्वार से गंगासागर तक समूचे गांगेय क्षेत्र में मनाया जाता है। सनातन धर्म में मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान अत्यंत पुण्यदायी होता है।
स्कंद पुराण का केदारखंड, मत्स्य पुराण और विष्णु पुराण गंगा अवतरण के आख्यानों से भरे हुए हैं। गंगा में अस्थि प्रवाह के प्रमुख केंद्रों के रूप में हरिद्वार, काशी और सोरों तीर्थ विख्यात हैं। गढ़मुक्तेश्वर, पटना, प्रयाग और गंगासागर में भी उन क्षेत्रों के निवासी अस्थि प्रवाह करते हैं। दशमी के पावन दिवस पर गंगास्नान का अपार महत्व है। दशहरा स्नान मोक्ष प्रदान करने वाला है। गंगा दशहरा के दिन स्नान और दान करने से पापों का नाश होता है।
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